
हरियाणा की पावन धरा पर समय समय पर ऐसे व्यक्तित्व जन्म लेते रहे हैं जो पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे है। किसी भी क्षेत्र में हरियाणा की मिटटी अपना सुनहरा रंग भरने में पीछे नहीं रही है. प्रत्येक हरियाणा वासी को गौरव के पलों में ले जाने के लिए अनगिनत नाम हैं जो पूरे संसार के लिए तो आदरणीय हैं ही, साथ ही साथ हम हरियाणा वासियों के लिए वे सब एक गर्वित धरोहर हैं।  |
सूर्यकवि पंडित लख्मी चंद जी आभार सहित |
उन सब चमकते सितारों में एक नाम है , सूर्यकवि पंडित लख्मी चंद का, जिनका हरियाणा के लोक साहित्य में एक अलग ही सम्मान और स्थान है। पंडित लख्मी चंद का जन्म सन 1903 में गांव जांटी कलां जिला सोनीपत हरियाणा में एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से उनकी रुचि गायन और नृत्य में थी और उनकी जबान पर मां सरस्वती का भरपूर आशीर्वाद था। उन्होंने सुप्रसिद्ध हरियाणवी लोक कवि मान सिंह को अपना गुरु बनाकर लेखन कार्य शुरू किया।
स्वांग - स्वांग शब्द का अर्थ होता है - कोई छद्म रूप धारण करना। लोक कला में इसका अर्थ प्रचलित हुआ कि किसी विख्यात ऐतिहासिक व्यक्तित्व के जीवन पर आधारित कोई नाटक का मंचन करना। हरियाणवी बोली में स्वांग शब्द अपभ्रंश होकर सांग बन गया।
और जब कोई लोक कवि किसी भी ऐतिहासिक विवरण को गीत और संगीत के माध्यम से बड़े ही मनोरंजक तरीके से प्रस्तुत करता तो यह सांग कहलाया जाने लगा।
सांग के क्षेत्र में पंडित लखमी चंद के योगदान को सुनहरे शब्दों में लिखा जाएगा और युगों युगों तक हरियाणवी लोक सस्कृति के आकाश में यह सूर्य चमकता रहेगा।
हरियाणा के लोगों में इनके सांग देखने का बड़ा उत्साह रहता था। आम धारणा के अनुसार पंडित जी तुरंत कवि थे अर्थात किसी भी किस्से के लिए जरूरी रागनियां की रचना गायन करते करते स्वत: हो जाती थी , उनकी गायी हुई रचनाओं को बाद में ही कलमबद्ध किया जाता था। उनकी अधिकांश रचनाएं विभिन्न लोक गायकों द्वारा मौखिक रूप से मंचो से गाई जाती रही और जन मानस की सोच का हिस्सा बनी। ऐसी सभी रचनाएं कालांतर में कलमबद्ध की गई।
पंडित जी ने बहुत थोड़े से अंतराल में ही पूरे उत्तर भारत में अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर अलग मुकाम हासिल कर लिया था, परंतु विधाता भी शायद ऐसे विशेष लोगों को ज्यादा समय तक अपने से दूर नहीं रखता और उन्हें जल्दी ही अपने पास बुला लेता है ।पंडित लखमी चंद का सन 1945 में केवल 42 वर्ष की छोटी सी उम्र में निधन हो गया। निश्चित ही यह पूरे हरियाणवी लोक संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति थी। पंडित जी के सहयोगी कालजयी वादक :- उस्ताद धूला , उस्ताद तुंगल , उस्ताद सुभान ( साभार )
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